“Purnabrahma Stotram” is a profound hymn dedicated to the complete realization of the supreme divine entity, representing the wholeness of existence and consciousness. Rooted in Vedic philosophy, this stotra extols the omnipresence, infinite power, and transcendental qualities of the Supreme Brahman. Reciting this stotram helps in spiritual elevation, mental peace, and aligning oneself with the eternal truth of the universe.
“पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्” एक गहन स्तुति है जो संपूर्ण ब्रह्म की महिमा का वर्णन करती है। यह स्तोत्र वेदांत दर्शन पर आधारित है और ब्रह्म की सर्वव्यापकता, अनंत शक्ति और अद्वितीयता को दर्शाता है। इसका पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और ब्रह्मांडीय सत्य के साथ एकात्मता की अनुभूति होती है।
पूर्णब्रह्म स्तोत्रम् – Purnabramha Stotram
पूर्णचन्द्रमुखं निलेन्दु रूपम्
उद्भाषितं देवं दिव्यं स्वरूपम्
पूर्णं त्वं स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवम्
पिता माता बंधु त्वमेव सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। १ ।।
कुंचितकेशं च संचितवेशम्
वर्तुलस्थूलनयनं ममेशम्
पिनाकनीनिका नयनकोशम्
आकृष्टओष्ठं च उत्कृष्टश्वासम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। २ ।।
नीलाचले चंचलया सहितम्
आदिदेव निश्चलानंदे स्थितम्
आनन्दकन्दं विश्वविन्दुचंद्रम्
नंदनन्दनं त्वम् इन्द्रस्य इन्द्रम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ३ ।।
सृष्टि स्थिति प्रलय सर्वमूळम्
सूक्ष्मातिसुक्ष्मं त्वं स्थूलातिस्थूलम्
कांतिमयानन्तम् अन्तिमप्रान्तम्
प्रशांतकुन्तळं ते मूर्त्तिमंतम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ४ ।।
यज्ञ तप वेद ज्ञानात् अतीतम्
भावप्रेमछंदे सदावशित्वम्
शुद्धात् शुध्दं त्वं च पूर्णात् पूर्णम्
कृष्णमेघतुल्यम् अमूल्यवर्णम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ५ ।।
विश्वप्रकाशं सर्वक्लेशनाशम्
मन बुद्धि प्राण श्वासप्रश्वासम्
मत्स्य कूर्म नृसिंह वामनः त्वम्
वराह राम अनंत अस्तित्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ६ ।।
ध्रुवस्य विष्णु त्वं भक्तस्य प्राणम्
राधापति देव हे आर्त्तत्राणम्
सर्व ज्ञान सारं लोक आधारम्
भावसंचारम् अभावसंहारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ७ ।।
बलदेव सुभद्रा पार्श्वे स्थितम्
सुदर्शन संगे नित्य शोभितम्
नमामि नमामि सर्वांगे देवम्
हे पूर्णब्रह्म हरि मम सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ८ ।।
कृष्णदासहृदि भाव संचारम्
सदा कुरु स्वामी तव किंकरम्
तव कृपा विन्दु हि एक सारम्
अन्यथा हे नाथ सर्व असारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ।। ० ।।
।। इति श्री कृष्णदासः विरचित पूर्णब्रह्न स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।